चल रहा है वक़्त अपनी चाल ,
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
धुंदला जाएँगी यादें ,
भुला दी जाएँगी बातें ,
रेह जायेगा तोह यह बदलता हुआ वक़्त और एक वो इन्सान ,
जिसके साथ होने से रुक जाता था वक़्त और थम जाती थी उसकी चाल …
वो उसका मुस्कुराना ,
मेरे बिन कहे सब बातें समझ जाना …
वक़्त बेवकत पर मेरा सहारा बन जाना …
पर आज ना जाने क्यों एक डर सताता है
आज ना जाने क्यों वो इन्सान मुझे कही नज़र न आता है …
मेरे कितने भी बोलने पर अब उसे कुछ समझ नहीं आता है …
समझ आता है तो मुझे कि वो वक़्त कुछ और था, यह वक़्त कुछ और है ...
न वो वक़्त मेरा था न ही वो इंसान कभी मेरा था …
था तो बस मेरा एक भ्रम ,
मेरा विश्वास और उसके लिए मेरा घमंड ...
पर फिर एक सोच अपने अंदर पाता हुँ …
चल रहा है वक़्त अपनी चाल ,
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
है वो मेरा घमंड , है यह रिश्ता मेरा विश्वास
अब तो आ जाये कोई भी वक़्त , बदल दूंगा मैं उसकी चाल …
पर धीरे धीरे टूट रहा हुँ …
न जाने क्यों पीछे छूट रहा हुँ …
तेरे साथ के बिना मैं अब न आगे बढ़ पाउँगा ,
अपने हाथ में तेरा हाथ देखना चाहूंगा …
खुले जो आँख उसे सामने पाऊ …
और जो न वो दिखी तो अपनी आँखे बंद कर फिर सो जाऊ …
पर छूटा जो कभी उसका साथ …
छूटा जो कभी उसका हाथ तोह कभी फिर आँखे मैं न खोल पाऊ …
फिर कभी मैं हस्स न पाऊँ
चल रहा है वक़्त अपनी चाल ,
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
धुंदला जाएँगी यादें ,
भुला दी जाएँगी बातें ,
रेह जायेगा तोह यह बदलता हुआ वक़्त और एक वो इन्सान ,
जिसके साथ होने से रुक जाता था वक़्त और थम जाती थी उसकी चाल …
वो उसका मुस्कुराना ,
मेरे बिन कहे सब बातें समझ जाना …
वक़्त बेवकत पर मेरा सहारा बन जाना …
पर आज ना जाने क्यों एक डर सताता है
आज ना जाने क्यों वो इन्सान मुझे कही नज़र न आता है …
मेरे कितने भी बोलने पर अब उसे कुछ समझ नहीं आता है …
समझ आता है तो मुझे कि वो वक़्त कुछ और था, यह वक़्त कुछ और है ...
न वो वक़्त मेरा था न ही वो इंसान कभी मेरा था …
था तो बस मेरा एक भ्रम ,
मेरा विश्वास और उसके लिए मेरा घमंड ...
पर फिर एक सोच अपने अंदर पाता हुँ …
चल रहा है वक़्त अपनी चाल ,
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
है वो मेरा घमंड , है यह रिश्ता मेरा विश्वास
अब तो आ जाये कोई भी वक़्त , बदल दूंगा मैं उसकी चाल …
पर धीरे धीरे टूट रहा हुँ …
न जाने क्यों पीछे छूट रहा हुँ …
तेरे साथ के बिना मैं अब न आगे बढ़ पाउँगा ,
अपने हाथ में तेरा हाथ देखना चाहूंगा …
खुले जो आँख उसे सामने पाऊ …
और जो न वो दिखी तो अपनी आँखे बंद कर फिर सो जाऊ …
पर छूटा जो कभी उसका साथ …
छूटा जो कभी उसका हाथ तोह कभी फिर आँखे मैं न खोल पाऊ …
फिर कभी मैं हस्स न पाऊँ
चल रहा है वक़्त अपनी चाल ,
नए को पुराना और पुराने को भूलना
ही है इसकी फितरत ,
येही तो है इसकी चाल …
Sid... Luv u ...
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